Depression
:डिप्रेशन:
शहरयार साहब की एक
मशहूर नज़्म "सीने में जलन आँखों में तूफान सा क्युँ है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्युँ है।"
आप सोच रहे होंगे
की अजीब किस्म का इंसान है पहला ब्लॉग लिखा वो भी दुःख भरे विषय पर। पर क्या करूँ
जहाँ भी देखता हूँ वहां अंदर से बैचेन, परेशान, अकेलेपन के शिकार, नाराज, चिड़े हुए, ग़ुस्से से भरे लोग नज़र आ जाते है। बची-खुची कसर हर रोज समाचार पत्रों एवं
न्यूज़ चैनल में आये दिन आत्म हत्या,
दंगा- फसाद, तोड़फोड़ की खबरे पूरा कर देती है।
एक बात जो की
डॉक्टर्स एवं दुनिया की बड़े बड़े विश्वविद्यालयो द्वारा की गयी रिसर्च से साबित
होती है की सुखी एवं समपन इंसान को आप आसानी से गुस्सा नहीं दिला सकते आपको बहुत
मेहनत करके उसकी कमजोरी का पता कर उस कमजोरी पर बार-बार वार करना पड़ेगा।
ठहरे हुए पानी में
सुनामी लाने के लिए आपको उसकी जड़ में जाकर भूकंप लाना पड़ेगा वरना उसमे पत्थर फेकने
से सिर्फ कुछ तरंगे ही पैदा होगी जो किसी बच्चे को रोमांचित करने का ही काम कर
सकती है, किसी को किसी भी तरह का नुकसान नहीं
पहुँचा सकती है।
वही दूसरी और किसी
बैचेन, परेशान आदमी को गुस्सा दिलाने और
ज्वालामुखी में बदलने के लिए आपको बस एक छोटा सा छेद करना पड़ेगा मतलब उसे बस हल्का
सा उकसाना पड़ेगा। उसके अंदर का विध्वंसक लावा धरती को
फाड़कर, मतलब उसकी सीमाओं जिनमे वो अब तक संयमित था, से बाहर आ जायेगा और
अपने आस-पास तबाही मचाएगा। वो कहते है न की, दीवार वहां से टूटती
है जहां सबसे ज्यादा कमजोर होती है।
परिवार के सदस्यों
में आपस में झगडे हो रहे है, दोस्त एक दूसरे के दुश्मन बनते जा रहे
है, जाति, धर्म, रंग, रहन-सहन के नाम पर बंटते जा रहे है और
भीड़ में होकर भी अकेले होते जा रहे है। अपने
सामने किसी और के अस्तित्व और ख़ुशियों को कुछ समझते ही नहीं। स्वार्थ की चरम सीमा को पार कर रहे है।
अज़ीज़ नजान साहब
की एक मशहूर कव्वाली की दो पंक्तियों याद आती है,
" याद
कर सिकंदर के हौसले तो आली थे, जब गया था दुनिया से दोनों हाथ खाली
थे।"
खुशियों के पीछे
पता नहीं कहाँ-कहाँ भाग रहे है।
नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा ? उससे मेरी शादी नहीं हुई तो क्या होगा ? बड़ा घर - बड़ी गाड़ी तो किसी भी हालत में
चाहिए। समाज में इज़्ज़त तो तभी होगी जब बहुत
सारा पैसा होगा।
हम सब ऐसे क्यों
हो गए हैं ? और क्या जिनके पास ये सब है वो सच में
खुश है ?
बहुत से पति चाहते
है की उनकी पत्निया बंधुआ मजदुर की तरह पूरी ज़िंदगी पिसती रहे, कोई सवाल न करे। बहुत
सी पत्निया चाहती है की पति घर दामाद बन के रहे आपने माँ - बाप, भाई बहिन को भूल जाये। ऑफिस
में बॉस चाहता है की कर्मचारी कोल्हू के बैल की तरह आँख बंद कर घिसता जाये, कर्मचारी चाहता है बॉस उसकी हर गलती को नजरअंदाज कर उसे तरक्की
दे। प्रेमिका चाहती है की उसका प्रेमी उसे जब उसकी (प्रेमिका) की मर्जी हो तब उसे
समय दे, फिर चाहे बेचारे प्रेमी की निजी ज़िंदगी
जाये भाड़ में! वही दूसरी तरफ अपना हीरो (प्रेमी) भी कम
थोड़ी है, कही प्रेमिका हिटलर है तो कही प्रेमी ।
बहुत से माँ बाप
अपनी मर्ज़ी का पेशा अपने बच्चो पर थोपने की कोशिश करते है, बच्चे क्या चाहते है किसे फिक्र है? और बहुत से बच्चे भी महान हो गए है माँ बाप तभी तक बर्दाश्त
होते है जब तक की वो अपने पैरो पर खड़े न हो जाए। उसके बाद उनके मां बाप की जिंदगी
वो कैसी कर देते है ये हम सब अक्सर खबरों
में और कभी कभी अपने आस पास साक्षात देख ही लेते है!!!
खुशिया ढूंढने के चक्कर
में ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल, दिल का दोरा और न जाने क्या-क्या पाल बैठे है । दोस्तो
आप तो जानते है की हमारा दिमाग एक खाली कागज की तरह होता है। हम इस पर जो भी लिखते
है ये हमे वही बताता है। अगर हम अच्छा सोचना चाहते है तो ये हमे अच्छी बाते याद दिलाता
है और गुस्सा होना चाहते है तो गुस्से होने वाली बाते याद करवाता है।
असल में खुशी हमारे अंदर ही छिपी है जैसे कस्तुरी-हिरण... बस जरूरत
है तो उसे पहचाने की और महसूस करने की ।
आप सोच रहे होंगे की क्या फालतू बकवास कर रहा है.... कौन होगा जो
खुश नही रहना चाहता? ...कस्तुरी.......हिरण..... ये सब तो ठीक
है पर ये बताओ की अगर मेरे अंदर भी खुशी छिपी है तो उसे कैसे ढूँढूँ? ये बताओ वरना भाड़ में जा॥
तो मेँ बताता हूँ आपको की अपने अंदर की खुशी को कैसे ढूँढे? बस ये याद रखें की ये
काम करते समय आपका फोन silent हो।
गली में छोटे बच्चो को खेलते हुआ देखे वो भी कम से कम 15 से 20
मिनिट। हाँ ये भी ध्यान रखे की उस समय आपके माथे पर कोई शिकन या सलवटे ना पड़े। मतलब
एक दम नॉर्मल, रिलेक्स हो कर देखे। उन बच्चो की मासूम शरारते पक्का आपके अंदर खुशी
पैदा न कर पाये लेकिन वो दरवाजा जरूर खोल देगी जहां से खुशी की कुछ बुँदे आपको महसूस
होने लग जाएगी।
मंदिर में आरती की घंटियो की आवाज, मस्जिद की अजान, गुरुद्वारे के शबद.....
बस थोड़ा रुक कर, अपनी आखे बंद कर, कुछ पलों के लिए सुनने की कोशिश
कीजिये। तितलियों को उड़ते हुए अक्सर देखा होगा लेकिन अब एक बार फिर से देखिये, इस बार थोड़ा थोड़ा ठहरिए और बिना किसी शिकन के देखिये।
बारिश की बुंदों को जमीन पर पड़े हुये, पानी में छींटे उड़ते हुये
देखिये, हवा में पेड़ो के पत्तों की आवाज सुनने की कोशिश कीजिये।
किसी गरीब असहाय को एक बार खाना खिला कर देखिये, ठंड से परेशान
किसी बेघर को एक गर्म कपड़ा दे कर तो देखिये।
दोस्तो में गारंटी देता हूँ की आप कुछ खोएँगे नही पर पा जरूर जाएंगे।
अगर फिर भी लगे की खुशी महसूस नही हो रही है तो आपकी परेशानी जिसकी
वजह से आप खुश नही रह पा रहे हें... हमे मेल कर दीजिये।
आपका ये दोस्त पक्का आपकी मदद करेगा।
हम बहुत जल्द इसी विषय के साथ फिर आएंगे ताकि आपको और लाभ मिल सके।
“घर से मस्जिद है बहुत
दूर चलो यूं करले, किसी रोते हुये बच्चे को हँसाया जाए “
तो में रजनीश पाल अपने साथी पंकज पाल के साथ अगले सप्ताह फिर आऊँगा
एक नए विषय के साथ नववर्ष की आप सभी को शुभकामनाए, खुश रहिए और खुशिया बाँटिए...
नमस्कार, सत श्री अकाल, खुदा हाफ़िज़
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